Monday, December 21, 2009

पहला दस्‍तावेज


मेरा जन्‍म प्रमाण-पत्र

Tuesday, December 15, 2009

कल मैं एक महीने की हो जाऊंगी

कल यानी 15 दिसम्‍बर को मैं पूरे एक महीने की हो जाऊंगी, 16 नवम्‍बर को ही तो मैं पैदा हुई थी।
यह पहले महीने का ही रंग है
यही जीवन है
यहां रोना भी है

तो हंसना भी है

पहचाना मुझे : मैं कृतिका उर्फ तनुजा

ये मैं हूं। मैं यानी कृतिका। मेरे ढेरों नाम है। सब मुझे लाड से अपने-अपने नाम दे रहे हैं। मुझे भी ये नाम भाते हैं। स्‍नेह और अपनापन किसे नहीं भाता? मेरे दादाजी मुझे तनुजा कहकर स्‍नेह देते हैं, तो मेरे ताऊजी त्रिवेणी।
अभी सहारा, बाद में नहीं
जी, आपको ही देख रही हूं
अरे, ये क्‍या ?

जरा उधर देखना

Sunday, November 29, 2009

मेरा नाम

मेरा नाम मुझे मिल गया है। आप आज के बाद मुझे कृतिका के नाम से पुकार सकते हैं। निकटवर्ती कस्‍बे साहवा के पण्डित श्री डूंगरमल जी सारस्‍वत ने विधि-विधान पूर्वक दिनांक 26 नवम्‍बर, 2009, गुरूवार को नामकरण किया। सच में, मैं बहुत खुश हूं। आप भी खुश हैं ना।

मेरे दादाजी भी खुश हैं-
ध्‍यान से देखो ये मैं ही हूं, मैं यानी कृतिका चौधरी।

Wednesday, November 25, 2009

थोड़े समय बाद लगातार मिलते रहेंगे

एकता सदन में मैं आराम से हूं।
एकता----- एकता मेरे ताउजी हुणताराम की बेटी है। बेटी के नाम से घर का नाम, मुझे खुशी है। एकता दीदी मेरे हरदम पास रहेगी। और तो और वह नटखट भी है। अपनी फोटो खिंचवाने से भी परहेज करती है।
मेरे पास हरदम रहने वालों में पूनम दीदी का भी नाम है। पूनम दीदी हमारे पड़ौसी नारायण ताउजी की बेटी है। पूनम दीदी फोटो भी बड़े सलीके से खिंचवाती है। देखेंगे आप -
एक खबर : विधि-विधान पूर्वक गुरूवार, 26 नवम्बर, 2009 को मेरा नामकरण किया जाएगा। मेरी खबर और मेरा नाम आप तक जल्दी ही पहुंच जाएगा। इतना जरूर है कि कुछ विलम् हो सकता है, क्योंकि मैं संचार क्रांति से कुछ दूर हूं ना। और इसीलिए आपसे उम्मीद करती हूं कि आप होने वाले विलम् से नाराज नहीं होंगे।

हां, यह वादा है कि मैं दो-तीन महीने बाद जब गांव से चूरू लौटूगीं तब आपसे लगातार मिलती रहूंगी।

यह हमारा घर है

मैं 23 नवम्बर, 2009 को दोपहर 1.45 बजे चलकर ठीक 95 किलोमीटर का सफर कर मेरे गांव भाड़ंग (तहसील- तारानगर, जिला- चूरू) में हमारे घर 'एकता सदन' ठीक 3.45 बजे पहुंची। निजी गाड़ी बड़े आराम से धीरे-धीरे आई, मेरी मां मुझे बिल्कुल तकलीफ नहीं हुई।
मेरे गणेश ताउजी, आदराम ताउजी और मेरे दादाजी श्री मनफूलराम सहारण ने मेरी आगवानी की। मुझे प्रेम से निहारा।

मेरे दादाजी पोती रूप में मुझे पाकर खुश थे।

मुझे इस बात की खुशी है कि मेरे दादादी हर आने वाले के सामने बड़े उत्साह से पोती की प्रशंसा कर रहे हैं। उनकी मुद्रा खुशी की है।

मैं गाव जाउंगी

मुझे आज 23 नवम्बर, 2009 को अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है। मैं अपने पैतृक गांव भाड़ंग, तहसील- तारानगर,‍ जिला-चूरू जाउंगी। मैं बहुत खुश हूं। मेरी नानीजी ने मुझे नहलाकर नए कपड़े पहनाएं हैं, और मेरी लक्ष्मी ताईजी को सौंपा है।
अब मैं मेरे पापा, लक्ष्मी ताईजी और मां के साथ गांव जाउंगी। अरे, मैं बताना ही भूल गई। मुझे गांव से लेने मेरे भइया अर्जुन आए हैं। गणेश ताउजी और लक्ष्मी ताईजी के छोटे बेटे। मैं जल्दी ही आपको उनसे भी मिलवाउंगी।
मेरे लिए राजकीय डेडराज भरतिया जनरल अस्पताल, चूरू यादगार रहा।
meri देखभाल यहां एकदम सही की गई। मुझे मेरी मां को डॉ. शरद मिश्रा नियमित देखते रहे, आज भी देखा। वहीं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. इकराम हुसैन नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल चावला ने मुझे दक्षता से देखा और गांव जाने की इजाजत दी।
मैं नर्स उषा दीदी को कैसे भूल सकूंगी, जिन्होंने मेरी मेरी मां को दिन में अनेकों दफा संभाला।
और तो और मैं सफाईकर्मी नारायणी बाई को भी याद रखूंगी, उन्होंने मेरी मां की खूब देखभाल की। मुझे भी उनसे दुलार मिला।


मेरे नाना, मामी, मौसी भी आए

main जिस दिन इस दुनिया में आई थी, उस दिन मेरे नानाजी (श्री होशियारसिंह जाखड़) बड़े मामाजी (श्री प्रदीप जाखड़) भी आए थे। लेकिन वे मेरे क्षणिक दर्शन कर पाए, क्योंकि मैं उस दिन इतनी व्यवस्थित नहीं हो पाई थी। 23 नवम्बर, 2009 को मेरे अस्थाई निवास कोटेज नं. 4 में मुझे से मिलने फिर से मेरे नानाजी आए। मुझसे ढेरों बातें कीं। नानाजी के साथ मुझसे मिलने मेरी विनोद मौसी भी आई। विनोद मौसी मेरी इकलौती सगी मौसी है।
वहीं मुझसे मिलने मेरी बबीता मामीजी भी अपने गांव से आईं। बबीता मेरी सगी छोटी मामीजी हैं। बबीता मामीजी के साथ उनकी बेटी यानी मेरी दीदी भी थी।
बड़ी
मामीजी गायत्री भी बीच में एक दिन मुझसे मिलने आईं थी। प्रदीप मामाजी भी बीच में कई बार मुझे संभालने गए थे।




पहली बार गोद में

जी हां, आप क्या जानते हैं कि मुझे पहली बार गोद में किसने लिया ? चलो मैं बताती हूं। चूरू में मेरे मां-पापा के निवास के ठीक सामने अपने स्थाई निवास में श्रीमती संतोष रणवां रहती हैं। वे राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में अध्यापिका हैं। मेरी मां की खास सहेली।

मेरे जन् के समय वे ही मां के साथ थीं। और उन्होंने ही मुझे पहली दफा गोद में उठाया। गोद में उठते वक् वे बहुत खुश थी और पापा से कह रही थीं कि कृष्णा की लड़की को पहली बार गोद में लेने की मेरी इच्छा पूर्ण हुई।

और सच में, जितने समय तक मां व्यवस्थित हुईं, संतोष मौसी ने बहुत ही अच्छे ढंग से मुझे रखा। बड़े ही आराम से।


Saturday, November 21, 2009

क्‍यों है ना शानदार ----------

मैं आज बहुत खुश हूं। वह इसलिए कि मुझे आज टोपी मिली है। सचमुच में बड़ी गर्म है यह। शहर में इन दिनों ठण्‍ड काफी है, बीती रात तो पारा 5 डिग्री से भी नीचे चला गया था। ऐसे में मेरी रोशनी ताईजी मेरे बारे में न सोचती तो किसके बारे में सोचती, मैं सबसे छोटी जो ठहरी। अरे, आप रोशनी ताईजी को नहीं जानते? चलो मैं बताती हूं। गांव सिरसला (चूरू) के हरिसिंह ताउजी मेरे पापा के कॉलेज के सहपाठी हैं। नजदीक मित्र भी। इस टोपी के लिए मेहनत उन्‍हीं हरिसिंह ताउजी और रोशनी ताईजी ने की है। क्‍यों है ना शानदार, मेरी टोपी और मेरी मुस्‍कराहट-------


आजकल हर मां रोजाना भयभीत होती होगी

आज की राजस्‍थान पत्रिका का सीकर संस्‍करण। आंकड़ा 1000 पार। जी हां, यह खबर इन दिनों राजस्‍थान में फैले स्‍वाइन फ्लू की है, जो की लीड न्‍यूज बनी है। ऐसी खबरों का पढ़कर हर एक मां इन दिनों भयभीत होती है। हालांकि मैं अभी छोटी हूं लेकिन मेरी मां यह खबर तो पढ़ती ही है।

अरे, मैं यहां--------

अरे, मैं यहां ! मुझे आश्‍चर्य और खुशी हो रही है, स्‍वयं को यहां देखकर। आप भी देखिए यहां खोजी पत्रकार पर क्लिक करके।

क्‍यों हैं ना खोजी पत्रकार ?

धन्‍यवाद प्रवीण जी।

कैसी है यह दुनिया ------ जरा देखने दें

मैं अब आंखें खोलने लगी हूं और आपकी तरह ही देखने का प्रयास करती हूं। मैं जल्‍दी से जल्‍दी इस दुनिया को देखना-समझना चाहती हूं। कैसी है यह दुनिया ------ जरा मुझे भी देखने दें।

Friday, November 20, 2009

ये कानून बदलना चाहिए : अभी-इसी वक्‍त

आप जानते हैं कि जनसंख्या किस तीव्र गति से बढ़ रही है, और आप यह भी जानते हैं कि लिंगानुपात भी कैसे असंतुलित होता जा रहा है। और शायद आप यह भी जानते होंगे कि इस संसार में बेटे की चाह कितनी बढ़ती जा रही है।

ऐसे हालात चिंतनीय है।

मेरे मां-पापा ने कोई बड़ा काम नहीं किया अगर यह समझा तो। उन्होंने तो बस लोकधर्म निभाने का संकल् ही लिया, यह सोचकर कि हम सिर्फ एक संतान पैदा करेंगे।

पहली संतान की पैदाइश के बाद तुरंत नसबंदी करवा लेगें। मेरे पापा का प्रण थाकि नसबंदी पुरूष नसबंदी होगी।

मेरे जन् के बाद मेरे मां-पापा बहुत ही खुश हुए, क्योंकि उनकी लड़की पैदा होने की ख्वाहिश पूर्ण हुई। पापा तो मां से जिदद भी करते थे कि अगर पहला लड़का हो गया तो यह संकल् मैं तोड़ूंगा, क्योंकि मुझे लड़की चाहिए और हम एक और अवसर स़ृजित करेंगे। लेकिन मां आश्वस् थी, कहती थी कि कुछ भी हो लड़की या लड़का, अवसर एक ही होगा।

ऐसी बातों के चलते मैं पहले ही अवसर पर उनके घर गई, तो खुशी तो स्वाभाविक है। मुझे भी खुशी है इस घर में आकर, क्योंकि इस घर में नन्हें बच्चों के लगने वाले पोस्टरों में भी कहीं लड़का नहीं है, सभी में लडकियां ही लड़किया हैं।





लेकिन मेरे पापा कुछ मायूस हैं। क्‍यों ?

वह इसलिए कि उन्‍हें पता चला है कि पहली संतान के बाद एक साल तक नसबंदी नहीं हो सकती। यह कानून है। यह कैसा कानून ? (कृपया कानून देखने हेतु यहां क्लिक करें और देखें 'हितग्राहियों का चयन' टॉपिक)


पापा कह रहे हैं कि जब मां-बाप दोनों की इच्‍छा हो, तो नसबंदी क्‍यों नहीं। सरकार चाहे तो लिखित सहमति ले सकती है।
और यह भी कि एक साल के दौरान दूसरा बच्‍चा गर्भ में आता है तो जवाबदेही किसकी ?
और यह भी कि एक तरफ तो सरकार जनसंख्‍या नियंत्रण के नारे लगा रही है और दूसरी तरफ बाध्‍य कर रही है कि आपको एक संतान तो हर हालात में रखनी ही होगी। तर्क यह है कि एक साल के बाद बच्‍चा स्‍वस्‍थ हो जाता है और शिशु मृत्‍यु की संभावना कम हो जाती है। तो यही बाध्‍यता हुई ना कि आप एक बच्‍चा तो पैदा कीजिए ही और उसे हर हालात में जिंदा रखिए।

पापा कहते हैं कि जब अटल निर्णय तो फिर स्‍वीकृति क्‍यों नहीं। यह भी वे तर्क देते हैं कि पांच संतान हों और एक साथ के सफर में दुर्घटनाग्रस्‍त होकर माता-पिता को नि:संतान करके चली जाएं तब।

पापा मेरी मां को ये सब बातें मेरे कॉटेज नं. 4 में बता रहे हैं, क्‍या आपका भी इनसे वास्‍ता है। अगर हां, तो क्‍यों नहीं करते पहल ऐसे कानून बदलने की।

ऐसे कानून अभी इसी वक्‍त बदलने चाहिए।



क्‍या आप इनको जानते हैं---------

आपने यह तस्‍वीर देखी। क्‍या आप इन्‍हें जानते हैं ?

अजी, आप नहीं जानते, लेकिन मेरे मां और पापा इन्‍हें कभी नहीं भूल पाएंगे। क्‍योंकि ये ही वो शख्‍स हैं, जिन्‍होंने बेटी होने की खबर उनको दी, यानि की मैं आ चुकी हूं लड़की स्‍वरूप में यह बतलाया
चलो फिर मैं आपको इनके विषय में बतलाती हूं :-

ये मेरे पापा के सहपाठी और मित्र हैं- श्री रामगोपाल जी ईसराण मैं इन्‍हें ताउजी कहूंगी। वर्तमान में ये राजकीय डेडराज भरतिया अस्‍पताल में मेल नर्स ग्रेड द्वितीय के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। तभी तो ये ऑपरेशन थियेटर में थे और मुझे पहली दफा देखा। मां को इन्‍हीं की आवाज सुनाई दी कि लड़की है और पापा को थियेटर से बाहर आकर कहा- बधाई हो, आपकी इच्‍छा पूर्ण हुई, बेटी हुई है।

अब तो आप इन्‍हें जान गए होंगे और मैं मानती हूं कि आप इन्‍हें धन्‍यवाद भी देगें।

साथ ही आप धन्‍यवाद दीजिए डॉ. शरद मिश्रा साहब को जिन्‍होंने न केवल पूरे 9 महीने मेरी जांच-पड़ताल की, बल्कि अपने सधे हाथों से मेरे को नई दुनिया दी।

धन्‍यवाद, डॉ. मिश्रा साहब और ईसराण साहब।

ऐसी नींद फिर कहां ---------

जी हां, मैं चूरू जिला मुख्‍यालय के सबसे बड़े चिकित्‍सालय राजकीय डेडराज भरतिया अस्‍पताल में हूं। मेरा अस्‍थाई निवास है- कोटेज वार्ड नंम्‍बर-4, मैं यहां मजे से हूं। मेरी सेवा में कोई कमी नहीं है , क्‍योंकि मेरी ताईजी और नानीजी दोनों 24 घंटें मुश्‍तैद हैं। मेरी हर एक आहट से वे सचेत हैं। और तो और वे मुझसे तुतलाते हुए बात करने का यत्‍न भी करने लगी हैं, हालांकि वे जानती हैं कि मैं उनकी तुतलाहट का अभी जवाब नहीं दे पाउंगी, फिर भी यह उनका अपनत्‍व और हर्ष का मेल है।
मैंने 19 नवम्‍बर, 2009 को जिंदगी में पहली दफा स्‍नान किया। गर्म पानी से नानीजी और ताईजी ने मुझे नहलाया। मैं सच में बहुत साफ हो गई हूं, और कुछ ठीक भी लगने लगी हूं, लेकिन मुझे पूरा स्‍वस्‍थ दिखने में अभी कुछ समय लगेगा। मैं अभी मां का दूध पूरा पी भी नहीं पाती हूं। लेकिन इतना जरूर है कि मैं उन्‍हें तंग नहीं करती। मैं गाय का शुद्ध दूध पीती हूं, कभी मां का दूध पीती हूं। और जी भरकर सोती हूं। क्‍योंकि मैं जानती हूं कि ऐसी चैन की नींद फिर कहां -------------

Wednesday, November 18, 2009

बाहरी दुनिया और दूध का स्‍वाद

दूसरे और तीसरे दिन बाहरी दुनिया का वातावरण सहनीय होना स्वाभाविक है। स्पर्श, रोशनी और सर्दी से वास्ता होना तथा मां के दूध का मधुर आस्वादन, कितना आनंदित करते हैं। मां के दूध के साथ-साथ नानी और ताई के हाथों से पिलाया गया दूध तो और भी स्वादिष् लगता है, तभी तो दूध पीते-पीते ही मैं नींद ले लेती हूं और फिर तुरंत जागकर रोते हुए दूध की मांग करने लगती हूं। बिना रोए मुझ अबोली का कौन ध्यान रखें ?







Tuesday, November 17, 2009

जीवन की शुरूआत

मैं -------- मानवी युग में मेरा पर्दापण 16 नवम्बर, 2009 ., दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर। तद् अनुसार मार्गशीर्ष कृष्णा, 15, विक्रमी संवत 2066 (सोमवती अमावस्या)

मैं फिलहाल अनाम------ सिर्फ बेटी ही नाम है मेरा। मेरी इच्छा भी यही है कि मुझे इसी नाम से पूरी उम्र पुकारा जाए। लेकिन यह मायावी संसार है तो एक मायावी नाम भी होना चाहिए। मां-बाप ने सोच ही रखा होगा, लेकिन अधिकृत तो विधि-विधान पूर्वक निकाला गया नाम ही होगा, मेरा नाम। मुझे खुशी होगी, जब मुझे मेरा नाम मिलेगा। मेरी पहचान मिलेगी, फिर मैं भी मेरी मां- कृष्णा जाखड़ और मेरे पिता- दुलाराम सहारण की तरह मेरे अपने नाम से पहचानी जाउंगी।

मेरे सपने और आकांक्षाएं ढेरों हैं, अनेक कल्पनाओं को लिए मैं इस धरती पर आई हूं। पूरे जीवन रंग भरने का प्रयास करती रहूंगी। शनै: शनै: --------